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Thursday, October 21, 2021

बिहार में भी लाखों कार, बाईक को सड़क से हटाया जाएगा, दिल्ली में स्क्रैप नीति पर काम शुरू

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 बिहार में भी लाखों कार, बाईक को सड़क से हटाया जाएगा, दिल्ली में स्क्रैप नीति पर काम शुरू

बिहार की राजधानी पटना जो की प्रदूषण के मामले में महानगरों को भी पछाड़ता देखा जा रहा है। वजह है वाहनो का बोझ और वैसे वाहन जो 20 वर्ष से भी पुराने है ऐसे वाहन अत्यधिक प्रदूषण फैलते है। दिल्ली शहर की बात करें तो वह वाहनो का बोझ कम होने का वजह वहाँ का बेहतर रोड कॉनेटिविटी, दिल्ली मेट्रो से लोगों का सफ़र तथा साइकिल का भी इस्तेमाल किया जाता है।

पटना में वाहनो के अलावा कोई साधन नहीं है जो प्रदूषण की दर को घाटा सके। केंद्र सरकार की नई नीति स्क्रैप नीति जो की दिल्ली में लागू हो चुकी है। इस नीति के तहत 20 साल से अधिक पुराने निजी वाहन और 15 साल से अधिक व्यावसायिक वाहनो को ज़ब्त किया जा रहा है। अबतक कई गाड़ियों को सीज किया जा चुका है। बिहार सरकार भी जल्द ही स्क्रैप नीति को लागू करने पर विचार कर रहा है।

अपने राज्य में यह नीति जैसे हाई लागू होगा तो 10 लाख से अधिक वाहन सड़कों से ग़ायब हो जाएगे, रेकर्ड की बात की जाए तो पटना शहर में 19 लाख वाहन रजिस्टर्ड है, इनमे 6 लाख वाहन अब तक पूरी तरह कबाड़ हो चुके है, जो की सड़कों पर नहीं चलते है। और 13 लाख वाहन ऐसे हैं जो सड़क पर चलने लायक हैं, रेकर्ड के अनुसार ईनमें से लगभग तीन लाख पटना शहर से बाहर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दौड़ते हैं।

और 10 लाख वाहन मौजूदा शहर में चलते हैं। इनमें से लगभग तीन लाख वाहन ऐसे हैं, जो अपने उम्र की सीमा पार कर चुके हैं और स्क्रैप वाहन नीति के लागू होने के बाद इन्हें फिटनेस टेस्ट पास करना अनिवार्य होगा। नहीं तो ऐसे वहाँ सड़क से बाहर कर दिये जायेंगे। बाईक के रेकर्ड की बात की जाए तो सिर्फ़ पटना ज़िले में 8 लाख बाईक का रजिस्ट्रेशन हुआ है। इनमे से 2 लाख बाइक 20 वर्ष से भी अधिक उम्र की है, इस रेकर्ड में ऐसे भी वाहन शामिल है जिनको कम्पनी ने बनाना बंद भी कर दिया है जैसे राजदूत, येजदी जैसी कंपनी की बाईक।

अब स्क्रैप नीति के तहत 20 साल से अधिक पुराने निजी वाहन और 15 साल से अधिक व्यावसायिक वाहनो को या तो फ़िट्नेस टेस्ट पास करना होगा या कबाड़ में जाना होगा। ऐसा भी है की 15-20 वर्षों के बाद आमतौर पर वाहनों के इंजन का फिटनेस इस लायक नहीं होता है कि वे प्रदूषण नियंत्रण के मानकों पर खरा उतर सकें। ऐसे में जिन्होंने सेकेंड और थर्ड हैंड कारें ले रखी हैं. इनमें से अधिकतर की उम्र 20 साल को पार कर चुकी हैं। इनमें से कुछ का हर दिन तो कुछ का लोग कभी-कभार इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ये सभी शहर की सड़कों से एक साथ बाहर हो जायेंगे। 

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