पटना: Farmers of Bihar News: पंजाब-हरियाणा जैसे राज्य उलझे हुए हैं कि इसका क्या करें, लेकिन बिहार में किसानों ने पुआल (पराली) से मोटी कमाई भी शुरू कर दी है। पुआल किसानों के साथ सरकार के लिए भी परेशानी का सबब है। किसान दो रुपये किलो पुआल खरीद कर सुधा डेयरी को पांच से छह रुपये में बेच रहे हैं। साथ ही कुट्टी बनाकर पशुपालकों को भी बेचा जा रहा है। इससे प्रति किलो छह रुपये की कमाई हो रही है। अब सरकार भी किसानों से पुआल खरीदेगी और बायोचार खाद बनाएगी। बहरहाल पुआल का बंडल बनाने वाली राउंड स्ट्राबेलर मशीन की खरीद पर सरकार ने अनुदान देने की योजना शुरू की है। बेलर खरीदने वाले किसानों को 80 फीसद अनुदान की व्यवस्था है।
सबौर स्थित कृषि विश्वविद्यालय ने शाहाबाद क्षेत्र के 13 किसानों को पुआल प्रबंधन की तकनीक दी है। लाखों रुपये कमाने का तरीका बताया है और रोल माडल के तौर पर पेश किया है। तकनीक को सभी जिलों में व्यापक स्तर पर लागू करने की तैयारी है। इसी आधार पर कृषि विवि के प्रसार शिक्षा निदेशक आरके सोहाने ने सभी जिलों के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के प्रधान व वरिष्ठ वैज्ञानिकों को पत्र लिखकर प्रस्ताव मांगा है।
छह रुपये तक का मिल रहा फायदा
ट्रैक्टर रखने वाले उद्यमी किसान राउंड स्ट्राबेलर मशीन की मदद से छोटे किसानों से महज दो से तीन रुपये प्रति किलो में पुआल खरीद कर सुधा डेयरी से पांच से छह रुपये प्रति किलो बेच लेते हैं। इसमें खर्च काट कर किसानों को प्रति किलो दो से तीन रुपये की बचत होती है। पुआल से कुट्टी बनाकर बेचने में किसानों को चार से पांच रुपये प्रति किलो का मुनाफा होता है। कुट्टी सात से आठ रुपये प्रति किलो की दर से पशुपालक खरीद रहे हैं।
चार लाख की आती है स्ट्राबेलर मशीनरोहतास के एक किसान के सफल प्रयोग के बाद आठ ब्लाक के अलग-अलग गांवों के 13 किसानों ने सरकार से स्ट्राबेलर मशीन खरीदने के लिए अनुदान मांगा है। स्ट्राबेलर मशीन साढ़े तीन से चार लाख रुपये की आती है। 80 फीसद तक अनुदान मिलता है। किसानों को अपनी जेब से महज 80 हजार रुपये खर्च करना होगा।
सुधा डेयरी 30 टन खरीदेगी पुआलरोहतास जिला में बिक्रमगंज केवीके के प्रधान और वरिष्ठ वैज्ञानिक रविंद्र कुमार जलज ने इस बार 30 टन पुआल सुधा डेयरी को बेचने का लक्ष्य तय किया है। गत वर्ष दिसंबर से फरवरी के बीच केवीके बिक्रमगंज ने सुधा डेयरी से 10 टन पुआल बेचा था। सुधा डेयरी इस पुआल को ईंधन के रूप में अपनी भट्ठी में इस्तेमाल करती है।
हर जिले में बनेगी बायोचार भट्ठी
कृषि विभाग ने पुआल को विशेष प्रकार की भट्ठी में 360 डिग्री सेल्सियस पर जलाकर बायोचार खाद बनाने की तैयारी भी शुरू कर दी है। कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और मैकेनिकों की टीम तकनीक सीखने 27 सितंबर को लुधियाना जा रही है। पुआल खरीद कर बायोचार खाद किसानों को मुफ्त में दी जाएगी। इस पहल से रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होगी।
मशरूम की खेती व मूर्ति में उपयोग पुआल पर मशरूम की खेती करके भी किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं। इसे समस्तीपुर जिला में पूसा स्थित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दयाराम ने विकसित किया है। पुआल तकनीक से मशरूम उगाने में समय भी कम लगता है। पुआल की अंटिया बनाकर बांध लिया जाता है। उसके बाद 15 से 20 मिनट तक पानी में फुलाकर गर्म पानी से उपचारित किया जाता है। आगे चोकर या बोझे की तरह बांधकर मशरूम के बीज लगाए जाते हैैं। इसी तरह बड़ी मात्रा में मूर्ति बनाने में पुआल का उपयोग किया जा रहा है।
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