समय का चक्र जब चलता है तो भिखारी को राजा और राजा को भिखारी बना देता है। कोई फ़र्श से अर्श तक पहुँचता है तो कोई अर्श से फ़र्श तक। समय कब किसको मात दे-दे कोई नहीं जानता। आइए इसी वाक्य से सम्बंधित एक महिला कि कहानी बताने जा रहे है।
ये कहानी है मध्य प्रदेश स्थित शिवपुर जिले के आदिवासी जूली की है। जूली कभी मध्य प्रदेश के शिवपुर जिले की अध्यक्ष हुआ करती थीं। लेकिन वर्तमान समय में वे बकरियाँ चराकर अपने परिवार के साथ गुज़ारा करती है।पहले जूली मजदूरी का काम किया करती थी तब उसे कोलारस के पूर्व विधायक राम सिंह यादव द्वारा उसे वर्ष 2005 में जिले का पंचायत सदस्य बनाया गया इसके पश्चात शिवपुरी के पूर्व विधायक विरेन्द्र रघुवंशी द्वारा उन्हें सीधा पंचायत का जेल अध्यक्ष बना दिया गया। 5 वर्ष तक इस पद की जिम्मेदारी सम्भालने के बाद इनकी लोकप्रियता बहुत ज़्यादा बढ गई।
एक समय मंत्रियो की तरह लाल बती वाली गाड़ी में घुमा करती थी जुली
वो भी एक समय था जब मंत्रियो की तरह लाल बती वाली गाड़ी में घुमती थी जुली हर वर्ग के लोग उनका आदर सम्मान करता था। हर कोई उन्हे मैडम कहकर उन्हे सम्बोधित करता है। ये सक्रिय राजनीति में एक अलग अपनी पहचान बना चुकी थी। लेकिन कब समय ने करवट ली कब लोग उनकी पहचान को भुला दिए पता ही नहीं चला। जो लोग उनके साथ-साथ राजनिति में हमेशा से निकट रहे वे लोग भी उनसे मुँह फेर लिए। देखते देखते समय का चक्र ऐसा चला कि उन्हे अब अपने परिवार का भरन पोषण के लिए सड़को पर बकरियाँ चरा रही है।
बकरियाँ चराने पर क्यो मजबूर हुई जूली

करीब 5 वर्षों तक कार्यभार संभालने के पश्चात् उन्हे एक बार हार का दरवाज़ा देखना पड़ा जिससे नराज लोगों द्वारा उन्हे पंचायत से निष्कासित कर दिया गया। नाम और पद् की गरिमा ख़त्म हो जाने के बाद जूली के परिवार की जिम्मेवारी इनके सर पर आ गई इसके बाद उन्हे मजबूरन बकरी चराना पड़ गया और वे आज भी परिवार को संभालने के लिए बकरियाँ चरा रही है। आज वे पूरे परिवार के साथ एक झोपड़ी में रहती है। लोग उन्हे पहचानने से भी हिचकिचाते है।
झोपड़ी बनाकर सरकारी ज़मीन पर रहती है, जूली

जूली को सरकार के तरफ़ से इंदिरा आवास योजना के तहत कुटीर निर्माण की मंजूरी दी गई लेकिन वह भी भ्रष्ट्राचार के जाल में आकर फँस गई। फिलहाल वे सरकारी ज़मीन पर झोपड़ी बनाकर अपने परिवार के साथ गुज़ारा कर रही है। घर की माली हालत ठीक न होने की वज़ह से वे बकरी चराने का काम करती है जिससे प्रतिमाह 5O रु0 मजदूरी के रूप में मिल जाते है। जिससे वे अपने परिवार का जीवन निर्वाहन करती है। जब बकरी चराने का काम नहीं मिलता है तब वे खेतो में मजदूरी करती है। और जब खेतो में काम नहीं मिलता तो गुजरात जाकर कामाती है।
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