एक स्टडी के मुताबिक 10 से 20 फीसदी बच्चे पीका डिसऑर्डर से कभी न कभी ग्रसित होते हैं. जब तक वो किशोरावस्था में नहीं पहुंच जाते हैं तब तक वो इस डिसऑर्डर से ग्रसित रहते हैं. कुछ स्टडीज की मानें तो न सिर्फ बच्चे बल्कि कुछ व्यस्कों में भी यही डिसऑर्डर देखा गया है.
अमेरिकी वेबसाइट पिडियाट्रिकऑनकॉल.कॉम के मुताबिक मिट्टी, चॉक या ऐसी चीजें खाने की आदत 1 से 7 साल के बच्चों में काफी देखी गई है. वेबसाइट की मानें तो कई बार पैरेंट्स अपने बच्चों को इस आदत की वजह से डांटते हैं और कुछ तो उन्हें मारने तक लगते हैं. जबकि उन्हें ऐसा करने की बजाय डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.
पेट भरने तक खाते हैं मिट्टी
डॉक्टरों की मानें तो बच्चों मिट्टी खाना, खून की कमी का प्रतीक है. कुछ माता-पिता अपने बच्चों को सिर्फ दूध ही देते हैं और इसकी वजह से भी उनमें खून की कमी हो सकती है. बच्चों की खुराक में अनाज, दाल या सब्जियों की कमी होने से भी यह दिक्कत देखी जाती है. बच्चों में अगर मिट्टी खाने की आदत है तो इसकी वजह से वो ऑटिज्म नामक बीमारी से भी ग्रसित हो सकते हैं. अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफॉर्मेशन (NCBI) की तरफ से बताया गया है कि बच्चा तब तक मिट्टी खाता है जब तक उसे संतुष्टि न हो जाए कि उसका पेट भर गया है.
बच्चों में आयरन और जिंक की कमी
एनसीबीआई की मानें तो पीका की वजह से बच्चों की रोजाना की गतिविधियों पर असर पड़ने लगता है. अगर आपको बच्चे में पीका के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो आपको तुरंत आयरन की कमी को दूर करने वाली दवाईयां अपने बच्चे को देनी शुरू करनी चाहिए. साथ ही बच्चों को यह भी बताएं कि उन्हें कौन सी चीज खानी है और किन चीजों से दूर रहना है. उन्हें यह बताना बहुत जरूरी है कि किन चीजों से उन्हें फायदा होगा और कौन सी चीजें उन्हें नुकसान पहुंचा सकती हैं. बच्चों में जिंक की कमी भी पीका की वजह हो सकती है.
बीमारी का कोई इलाज नहीं
पीका का कोई ट्रीटमेंट नहीं है. विशेषज्ञों के मुताबिक इस डिसऑर्डर के लिए आपको अपने न्यूट्रीशिनल से सलाह लीजिए. बच्चों की खाने-पीने की आदतों में बदलाव इस डिसऑर्डर को दूर कर सकता है. अगर न्यूट्रीशिनल की सलाह कम लगे तो फिर आप किसी मनोवैज्ञानिक से सलाह ले सकते हैं. काउंसलिंग, बिहेवियरल थैरेपी और मनोचिकित्सा की सलाह भी कुछ लोगों लेते हैं.
FROM - HIM NEWS
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