
पराली जलाने की समस्या से प्रभावित राज्यों के लिए हिमाचल रोल मॉडल बनकर उभरा है। प्रदेश में एक भी मामला धान की पराली को जलाने का लंबे समय से सामने नहीं आया है। कृषि विश्वविद्यालय ने भी अब इस दिशा में पहल की है, जिसके माध्यम से धान की पराली का उपयोग किया जा सके। कृषि विश्वविद्यालय ने धान की पराली का पशु आहार के रूप में उपयोग को लेकर कुछ सिफारिशें की हैं। प्रदेश में हरे व सूखे चारे की पहले ही कमी रहती है। इस कमी को दूर करने के लिए गेहूं के भूसे या धान के पुआल के रूप में अधिकांश चारा पंजाब और हरियाणा से प्रतिवर्ष खरीदा जाता है।
वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि धान की पराली में ऑक्सलेट और सिलिका जैसे एंटीन्यूट्रीशनल कारक होते हैं, जो डेयरी पशु आहार में इसके उपयोग को प्रतिबंधित करते हैं, परंतु वैज्ञानिक बताते हैं कि इन एंटीन्यूट्रीशनल कारकों को कुछ एक भौतिक और रासायनिक तरीके से कम किया जा सकता है। उनका मानना है कि इसमें मिक्स राशन या पूर्ण फीड ब्लॉक बनाकर या इसे यूरिया गुड़ उपचार के साथ सम्मिलित करके पौष्टिक चारे में बदला जा सकता है। वहीं धान की पराली से खाद तैयार की जा सकती है। धान की पराली से खाद तैयार करने में लगभग 45 दिन लगते हैं। यह खाद फसल की उपज को 4 से 9 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है।
कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एचके चौधरी ने कहा कि पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों के किसानों को हिमाचल प्रदेश के किसानों के स्ट्रॉ मैनेजमैंट मॉडल को अपनाना चाहिए ताकि वे इसका कुशलता से उपयोग कर सकें और पर्यावरण को बचाया जा सके। हिमाचल में लंबे समय से धान की पराली को जलाने का एक भी मामला सामने नहीं आया है।
FROM - HIM NEWS
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