हिमाचल प्रदेश माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा नौकरी सुधा मृतक पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर शादीशुदा बेटी को भी नौकरी का हकदार बताया है। माननीय न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर तथा माननीय न्यायाधीश सीबी बारो वालिया की संयुक्त बेंच ने सरकार को आदेश जारी किए हैं कि यदि शादीशुदा बेटी अनुकंपा के आधार पर नौकरी के पैरामीटर यानी मानदंड पूरा करती है तो वह भी नौकरी की हकदार होगी। अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से संबंधित ऐसे मामले भी सरकार के पास आए, जहां मृत सरकारी सेवक के परिवार में विधवा पत्नी या विधुर पति के अतिरिक्त कोई नहीं होते। हाई कोर्ट में एक ऐसा ही मामला सामने आया है जहां 8 मई 2019 को प्रार्थी के पिता का देहांत हो गया था। वह जिला आयुर्वेदिक कार्यालय कुल्लू चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे थे।
प्रार्थी के अनुसार उसके अलावा उसकी माता और बहन मृतक पिता पर आश्रित है। उनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है जो उसकी माता की देखभाल कर सकें। उसकी माता और बहन नौकरी करने में असमर्थ होने के कारण प्रार्थी ने अनुकंपा आधार पर नौकरी पाने के लिए आवेदन किया था परंतु उसका आवेदन यह कह कर खारिज कर दिया गया था कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने की नीति के तहत विवाहिता बेटियां पात्रता नहीं रहती। प्रार्थी ने सरकार की इस नीति को लौंगिक आधार पर भेदभाव पूर्ण बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। प्रार्थी का कहना था कि जैसे मृतक कर्मचारी का पुत्र पूरा जीवन पुत्र ही रहता है उसी तरह बेटी भी बेटी ही रहती है, चाहे वह शादीशुदा हो या अविवाहित।
इसलिए केवल इस आधार पर उसे अनुकंपा आधार पर नौकरी के लिए अयोग्य कहना कि वह विवाहित है भारतीय संविधान के तहत भेदभाव पूर्ण ठहराया जाना चाहिए। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि सरकार लौंगिक आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इसे भेदभावपूर्ण ठहराते हुए विवाहित महिलाओं को भी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए पात्र माना जाना चाहिए। विशेषता तब जब आश्रित परिवार में कोई पुरुष सदस्य नौकरी के काबिल ना हो।
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