
Himachalse/Shimla पहले तो हम कोरोना संकट का सामना कर रहे थे, अब पहाड़ी प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पोलन यानी पीला पदार्थ झड़ने से सांस की बीमारियों के साथ-साथ चर्म रोग का खतरा शुरू हो गया है। शिमला और इसके आसपास रहने वाले शहरवासियों में बच्चों, महिलाओं व बुजुर्गों में अस्थमा के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं। हर साल राज्यस्तरीय इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में सांस से संबंधित मरीजों की आमद बढ़ती है। इसी तरह से चर्म रोग के मरीज भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। बरसात जाने के बाद अब पाइन प्रजाति के वृक्षों से फलों के पककर पीला पदार्थ नीचे गिरने लगे हैं।
मेडिसन विभाग और चर्म रोग विभाग में एलर्जी के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। आइजीएमसी शिमला के चर्म रोग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डा. जीके वर्मा का कहना है प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में मास्क की दोहरी भूमिका हो गई है। पहली कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए दूसरा, पोलन से बचाव के लिए मास्क लगाना बेहद जरूरी है।
मौसम में बदलाव शुरू हो गया है और ऐसे में शरीर में खुजली और कई तरह के चर्म रोग पैदा हो सकते हैं। इसलिए बदलते मौसम से एलर्जी रखने वाले लोगों को बहुत ही एहतियात बरतने की जरूरत है। घरों से कम से कम निकलने से सांस संबंधी रोगों से बचाव नितांत आवश्यक है। उनका कहना है कि निचले मैदानी और मध्यम क्षेत्रों में कांग्रेस घास यानी गाजर घास पकने के कारण निकट आने वाले लोगों को अपने शिकंजे में ले सकती है। इससे छाती में संक्रमण और चर्म रोग बढ़ सकता है।

पोलन के साथ घास भी एलर्जी का कारण
प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चीड़ प्रजाति के वृक्ष पाए जाते हैं, जबकि निचले हिस्सों में विशेष तरह की घास पाई जाती है। जिसे कांग्रेस या गाजर घास भी कहा जाता है, जो अब यह पकना शुरू हो चुकी है और इसके निकट आने वाले व्यक्ति को संक्रमित होने का खतरा रहता है। ये घास शरीर में खुजली करती है।
FROM - HIM NEWS
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