कुछ ऐसे ही आप लोगों को देखने को मिलेगा हिमाचल में। हिमाचल के मंडी और बिलासपुर की सीमा पर करीब आठ परिवार ऐसे हैं, जो पिछले चार साल से गुफा में रह रहे हैं। पुरुष ही नहीं महिला और बच्चे भी आदिवासियों की तरह जीवन जी रहे हैं। सरकार और जिला प्रशासन इससे अनभिज्ञ भी नहीं है। केंद्र और प्रदेश सरकार की भी भूमिहीनों और बेघरों के लिए कई योजनाएं हैं। बावजूद इसके इन्हें गुफा से निकालने के कोई प्रयास नहीं हुए।
इन लोगों के पास मकान भी है और सनी लेकिन इसके बावजूद उनको ऐसी जिंदगी जीनी पड़ रही है।
क्योंकि कोलबांध परियोजना की झील निर्मित होने से इनके मकान और जमीन भू-स्खलन में तबाह हो गए। पिछले चार सालों में दो सरकारों के सामने यह मामला उठा, लेकिन इनकी समस्या का हल नहीं हुआ। साल 2014-15 में कोलबांध झील बनी थी। उसके बाद साल 2016 में जिला मंडी की धन्यारा पंचायत के कांडी गंाव में भू-स्खलन हुआ और उक्त 8 परिवार इस आपदा में बेघर हो गए।
तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने पीड़ित परिवारों को फौरी राहत के नाम पर 50-50 हजार रुपये प्रशासन से दिलवाकर औपचारिकता पूरी की, लेकिन उसके बाद इनकी सुध नहीं ली। प्रशासन ने बीच में इनमें से कुछ लोगों का धन्यारा स्कूल भवन में रहने का अस्थायी इंतजाम किया, लेकिन इन्हें स्थायी आवास नहीं दिला सके। गुफा में ही ये खाना बनाते हैं, वहीं सोते हैं।
वही दूसरी ओर इसी पंचायत के गांव समौल, कांडी, मैंदला, रोपडू़, स्वैड़ और बड़ीछ गांव के करीब 40 परिवार झील बनने के बाद सुरक्षित जगह पलायन कर अपना परिवार पाल रहे हैं। पूर्व कांग्रेस विधायक सोहन लाल ठाकुर ने बताया कि भूस्खलन कांग्रेस सरकार के समय में हुआ था। मैंने खुद एसडीएम को मौके पर भेज कर लोगों को सहायता दी।
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