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Friday, May 29, 2020

हिमाचल :आईआईटी मंडी का कमाल, चार हजार में बना डाला वेंटिलेटर

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 आईआईटी मंडी का कमाल, चार हजार में बना डाला वेंटिलेटर

Himachal/Mandi:भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने 2 कम लागत के पोर्टेबल वैंटीलेटर विकसित किए हैं जोकि प्रोटोटाइप उपयोग में आसान हैं और इन्हें आपातकालीन चिकित्सा के लिए गांव-देहात ले जा सकते हैं। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ  इंजीनियरिंग की एसोसिएट प्रोफैसर डॉ. अर्पण गुप्ता ने शोधकर्ता लोकेंद्र सिंह और सौरभ डोगरा के साथ मिलकर केवल 4000 रुपए की लागत में स्मार्ट वैंटीलेटर विकसित किया है। मैकेनाइज्ड आर्टिफिशियल मैनुअल ब्रीदिंग यूनिट (एम्बू) बैग के रूप में विकसित प्रोटोटाइप में सांस की दर और मरीज के फेफड़ों में प्रवाहित हवा की मात्रा को नियंत्रित करने जैसे विकल्प भी हैं।

खास तौर से विकसित इस प्रोडक्ट की विशिष्टता यह है कि मैनुअल उपयोग करने के अलावा मोबाइल एप्लीकेशन पर वाई-फाई से इसका उपयोग एवं नियंत्रण किया जा सकता है। इस मकसद से आईआईटी मंडी ने एक स्मार्टफोन एप्लीकेशन ‘आईआईटी मंडी वैंटीलेटर’ भी विकसित किया है। मोबाइल एप्लीकेशन से वैंटीलेटर को चालू-बंद कर सकते और सांस/मिनट (बीपीएम) की दर भी बदल सकते हैं। डिजाइन किए गए प्रोटोटाइप में हवा पम्प करने के लिए स्लाइडर-क्रैंक मैकेनिज्म है और यह वैंटीलेटर बनाना, असेम्बल करना और उपयोग करना भी आसान है।

वैंटीलेटर पर एक एमरजैंसी स्विच और मोबाइल एप्लीकेशन का भी विकल्प है ताकि वैंटीलेटर  में किसी खराबी आने पर इसे रोक दिया जाए और इसमें चेतावनी का अलार्म भी लगा है। वैंटीलेटर सीधे एसी सप्लाई या बाहरी बैटरी पर काम करेगा। यह वैंटीलेटर गैर-गंभीर मरीजों के लिए है जिन्हें सांस लेने में मदद चाहिए। प्रोटोटाइप के विकास के लिए आवश्यक सलाह देने हेतु एक मैडिकल टीम बनाई गई, जिसमें आईआईटी मंडी के चिकित्सा अधिकारी डॉ. चंदर सिंह और जागृति अस्पताल, मंडी के डॉ. मंजुल शर्मा और डॉ. जसदीप शामिल थे।

आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ  इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफैसर डॉ. राजीव कुमार ने अपनी शोध टीम के साथ मिलकर कम लागत में मैकेनिकल वैंटीलेटर विकसित किया है। इलैक्ट्रिक मोटर चालित सैल्फ-इन्फ्लेटेबल बैग के इस्तेमाल से बने इस वैंटीलेटर की लागत 25000 रुपए से कम होगी। इस वैंटीलेटर में सिंगल रैक और पिनियन मैकेनिज्म का उपयोग किया गया है जिसके तहत सैल्फ-इन्फ्लेटेबल बैग को एक तरफ से कम्प्रैस किया जाता है जो मरीज के फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाता है। यह काम इनवेसिव या गैर-इनवेसिव माध्यम से हो सकता है। इस तरह विकसित किए वैंटीलेटर का मरीज और वैंटीलेटर का ऑप्रेटर से इंटरफेस होता है।


from - Him News
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