![]() |
जब कंपनी में काम भी बंद हो गया तो खाने के लाले पड़ने लगे। यह कहानी है कि हिमाचल के जिला ऊना के हरोली के बढेड़ा गांव के विशाल की। वह लगभग 2200 किलोमीटर सफर पैदल और साइकिल पर तय कर पहुंचे हैं। उन्हें पालकवाह क्वारंटीन सेंटर में रखा गया है। विशाल का कहना है कि क्वारंटीन सेंटर में पहुंचते ही दो समय के भोजन में केवल दो-दो रोटी मिली, लेकिन उपायुक्त संदीप कुमार के हस्तक्षेप से व्यवस्था सुधरी और लोगों को पांच रोटियां।
लॉकडाउन में जिले के युवा की आंध्रप्रदेश के चेन्नूर जिले के कड़प्पा से ऊना तक संघर्ष यात्रा की कहानी किसी चरित्र फिल्म की पटकथा से कम नहीं। ऐसे कई लोग हैं, जो या तो देश के विभिन्न इलाकों में फंसे या ऐसे ही सफर पर निकले। विशाल ने बताया कि जब उन्हें और साथियों को लगा कि फंस जाएंगे तो कंपनी से निकलने को सामान पैक किया। सफर की शुरूआत डीजल के एक ट्रेलर में बैठकर हुई। इसमें वह और तीन साथी मैदुकुर पहुंचे। दो अन्य साथियों ने घर से 15000 रुपये मंगवाए थे। ये उसी के खाते में ट्रांसफर किए थे। वे लोग भी लंबे रास्ते तक उसके साथ रहे। पैसों के लौटाने का इंतजाम होते ही वापस हो गए।
रोजना 13 घंटे चलाते थे साइकिल
पुलिस ने चेकपोस्ट पर रोकना शुरू किया तो 9300 रुपये में दो साइकिल खरीदे। एक साइकिल पर दो लोग, जबकि एक पर सवार और सामान लादा गया। अंत में विशाल अकेले साइकिल पर रह गए और तेलंगाना होते हुए महाराष्ट्र और फिर छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, सागर, झांसी, मध्यप्रदेश पार कर उत्तरप्रदेश का आगरा ग्वालियर, फिर हरियाणा शुरू हुआ। फिर दिल्ली, पानीपत-करनाल पार किया। रास्ते में कई लोगों ने सहयोग किया। शुरुआती दौर में ऐसा भी समय आया, जब भूखे-प्यासे सोना पड़ा।
विशाल ने बताया कि उसने और उसके दो साथियों ने दोपहर 12: 30 तक साइकिल चलाई। फिर शाम को 3: 00 बजे से लेकर शाम के 7: 00 बजे तक। उसके बाद रात 9: 00 बजे से लेकर 11: 00 बजे तक। इस तरह हम रोज तकरीबन 13 घंटे साइकिल चलाते थे। मैहतपुर पहुंचते ही विशाल को पालकवाह में भर्ती कराया गया। जल्द ही उसका कोविड टेस्ट भी लिया जाएगा।
यह भी पढ़ें: हिमाचल : कलियुगी बेटा अपनी बुजुर्ग मां की हत्या कर शव जलाने चला था , फिर ऐसे खुल गई पोल
FROM - HIM NEWS
loading...
loading...
No comments:
Post a Comment